दो दिन से हड़ताल पर बैठे मोटरमैन
दुखी मुसाफिर फिर रहे बेचारे-बेचैन
बेचारे-बेचैन, किस तरह दफ्तर जायें
कोई सरल उपाय नहीं चव्हाण बतायें
दिव्यदृष्टि पीटते 'मराठी-मानुष' छाती
किंतु न कोई हमदर्दी ममता जतलातीं
मंगलवार, 4 मई 2010
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- सोचें-समझें तभी बात अपनी वह बोलें
- सोचें-समझें तभी बात अपनी वह बोलें
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- दुखी मुसाफिर फिर रहे बेचारे-बेचैन
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1 टिप्पणी:
Dhanyavad. Samir Bhaai bahut dinon baad Darshan huye. Is berukhi ki vajah kahin aapki narazgi to nahin. Koi bhool hui ho to kshama kijiyega. Divyadrishti
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