चलती रही रमेश की यूं ही अगर जबान
दुनिया भर में देश की रोज घटेगी शान
रोज घटेगी शान, इसलिए जब मुंह खोलें
सोचें-समझें तभी बात अपनी वह बोलें
दिव्यदृष्टि वरना मनमोहन कर लें कुट्टी
बिगड़े पर्यावरण केबिनेट से हो छुट्टी
मंगलवार, 11 मई 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
यह मैं हूं
ब्लॉग आर्काइव
-
▼
2010
(86)
-
▼
मई
(21)
- दिया सड़क पर मौत का नारी को उपहार
- झुकता उनके कृत्य से मानवता का भाल
- कायम करो 'मिसाल' उतारें लोग आरती
- कालकोठरी में ताई अब मुझे न रहना
- खूब चली बेशर्म पर अदालती बंदूक
- किसी तरह बेगम उसको हासिल हो जाए
- चल गांधी की राह बदन पर लगा लंगोटी
- मन्नू भाई जब तलक चला रहे सरकार
- लगा राम की मूर्ति बनें पॉलिटिकल पंडा
- फांसी की फाइल रहीं शीला बैठी दाब
- भगदड़ में जाये भले मुसाफिरों की जान
- केश कटाकर मंदिरा किया न चंगा काम
- ज्यादा भोजन से सदा होता है अतिसार
- चूहे को यदि गडकरी बतलायेंगे स्वान
- किंतु कागजी शेर ढेर हो ताकें अंबर
- सोचें-समझें तभी बात अपनी वह बोलें
- सोचें-समझें तभी बात अपनी वह बोलें
- जोड़-तोड़ से सब 'सरकारी माल' पचाओ
- सुन कर फांसी की सजा गया कसाई कांप
- ट्रेनिंग सेंटर टेरर का बना हुआ है पाक
- दुखी मुसाफिर फिर रहे बेचारे-बेचैन
-
▼
मई
(21)
1 टिप्पणी:
sahi kaha...:D
एक टिप्पणी भेजें