सजा बढ़ी राठौर की बंद हो गई हूक
खूब चली बेशर्म पर अदालती बंदूक
अदालती बंदूक चूक प्रत्यक्ष सुधारी
पूरी किया वसूल रही जो शेष उधारी
दिव्यदृष्टि जो काम करे नामर्दी वाला
बेइज्जत हो इसी तरह वह वर्दी वाला
गुरुवार, 27 मई 2010
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- खूब चली बेशर्म पर अदालती बंदूक
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- केश कटाकर मंदिरा किया न चंगा काम
- ज्यादा भोजन से सदा होता है अतिसार
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- किंतु कागजी शेर ढेर हो ताकें अंबर
- सोचें-समझें तभी बात अपनी वह बोलें
- सोचें-समझें तभी बात अपनी वह बोलें
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1 टिप्पणी:
बहुत खूब जी बहुत बढिया ।तीर निशाने पर है
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