सोमवार, 17 मई 2010

भगदड़ में जाये भले मुसाफिरों की जान

भगदड़ में जाये भले मुसाफिरों की जान
ममता जी देतीं नहीं फिर भी कोई ध्यान
फिर भी कोई ध्यान न कतई नेह जतातीं
'पैसेंजर-की-ही-गलती' वे स्वयं बतातीं
दिव्यदृष्टि हर हाल उन्हें 'तृणमूल' सुहाये
मुसाफिरों की जान भले भगदड़ में जाये

कोई टिप्पणी नहीं:

Powered By Blogger

यह मैं हूं

यह मैं हूं

ब्लॉग आर्काइव