शुक्रवार, 11 जून 2010

अर्जुन दादा बोलते थमकर सदा सटीक

अर्जुन दादा बोलते थमकर सदा सटीक
केवल अपने कथ्य ही मानें हरदम ठीक
मानें हरदम ठीक, नजरिया निजी अनूठा
'साथी' जो कुछ कहें उसे बतलाएं झूठा
दिव्यदृष्टि इसलिए 'सही' अवसर बोलेंगे
एंडरसन के 'अतिथि' भेद सगरे खोलेंगे

2 टिप्‍पणियां:

आचार्य उदय ने कहा…

आईये पढें ... अमृत वाणी !

दिलीप ने कहा…

badhiya...sateek vyang

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