भारत में कितना भी हो आतंकी गड़बड़झाला,
किंतु जवाबी कदम यहां पर एक न उठनेवाला।
बेगुनाह पब्लिक आए दिन बेशक मारी जाए,
मगर चैन से पांव पसारे सोता है रखवाला।
लोकतंत्र की शवशय्या पर डाल वोट की चादर,
तुच्छ सियासतदान खड़े हैं मुंह पर डाले ताला।
खोजबीन में पता चली है पाकिस्तानी साजिश,
फिर भी उसके ऊपर कोई अस्त्र न चलने वाला।
लश्कर पर पाबंदी की बातें पड़ रहीं सुनाई,
आप इसलिए संयम बरतें और कुछ दिनों लाला।
अगले हमले से पहले तक हिन्द रखे खामोशी,
मनमोहन से साफ कह गईं जरदारी की खाला।
दिव्यदृष्टि अफसोस न कर तू लाचारों के ऊपर,
जनमानस का रोष जल्द ही इन्हें जलाने वाला।
शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008
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1 टिप्पणी:
आपके विचार बहुत सुंदर है , आप हिन्दी ब्लॉग के माध्यम से समाज को एक नयी दिशा देने का पुनीत कार्य कर रहे हैं ....आपको साधुवाद !
मैं भी आपके इस ब्लॉग जगत में अपनी नयी उपस्थिति दर्ज करा रही हूँ, आपकी उपस्थिति प्रार्थनीय है मेरे ब्लॉग पर ...!
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