शनिवार, 25 अक्तूबर 2008

करें न ऐसा काम कुछ रुष्ट बिहारी मित्र

करें न ऐसा काम कुछ रुष्ट बिहारी मित्र
रेल यात्री की दशा जिससे बने विचित्र
जिससे बने विचित्र , राह में छूटें ' अपने '
मने नहीं त्यौहार ' वतन ' में टूटें सपने
दिव्यदृष्टि हो जाय व्यर्थ अपनों का पैसा
रुष्ट बिहारी मित्र काम कुछ करें न ऐसा
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यह मैं हूं

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