किया न कतई चांद ने कोई अनुचित काम
क्यों नाहक हूडा, भजन मचा रहे कोहराम
मचा रहे कोहराम, कर रहे मातमपुर्सी
एक बेदखल करे छीन ले दूजा कुर्सी
दिव्यदृष्टि फिर भी उल्फत की लाज निभाई
इस साहस के लिए कोटिश: उन्हें बधाई
गुरुवार, 11 दिसंबर 2008
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1 टिप्पणी:
ग़लत बात धर्म बदलना था
धर्म बदल इस्लाम को कलंकित करना था [
कुर्सी हुड्डा की दी थी ,लेली यही करना था ,
पुरखों की जायजाद थी ,किसी विधर्मी क्यों देते ?
प्यार किया था तो डरना क्या था ?
अपने किए को ग़लत समझते थे ,
इसी लिए भागे थे जैसे चोर के पाओं चोर से आगे थे [
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