घटनाएं आतंक की बढ़ें हिंद में रोज
उग्रवादियों की मगर हुई न पूरी खोज
हुई न पूरी खोज छिपे जो चप्पे-चप्पे
आंखमिचौनी खेलें देकर लारे-लप्पे
दिव्यदृष्टि देती पनाह उनको जो टोली
उसे ढूंढ़कर फौज मार दे फौरन गोली
गुरुवार, 31 जुलाई 2008
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4 टिप्पणियां:
फौज ढूंढ न पायी उसे, ये भी हुई कोई बात
मिल जाये साला मुझको, मैं ही मारूं लात
Maza Aa gaya Sir. Pehli Baar aapka blog padaa.
Namaste..
गजब लिखतें हैं आप..
मैं आपसे सहमत हूँ.
सुन्दर अभिव्यक्ति।
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