एक ओर वीरू जहां पीट रहे थे ' गॉल '
वहीं दूसरी ओर थी तिकड़ी फिर बेहाल
तिकड़ी फिर बेहाल , हाथ आई मायूसी
दर्शक हुए निराश बढ़ गई कानाफूसी
दिव्यदृष्टि लग चुका बैट पर जिनके ताला
विदा कीजिए उन्हें डाल कर सादर माला
शुक्रवार, 1 अगस्त 2008
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यह मैं हूं
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1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई।
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