एक तरफ बहुमंजिला बिल्डिंग आलीशान
वहीं, दूसरी ओर हैं टूटे हुए मकान
टूटे हुए मकान गरीबी जिनसे झांके
गुरबत का दुख-दर्द कदाचित कोई आंके
दिव्यदृष्टि इक रोज़ प्रगति की आए आंधी
यही सोचकर मिट्टी ढोएं राहुल गांधी
गुरुवार, 2 अक्तूबर 2008
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1 टिप्पणी:
कदाचित !
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