घटना से आतंक की घबराए अमिताभ
रहे देखते रात भर मारधाड़ का ख्वाब
मारधाड़ का ख्वाब, सीन फिल्मी हो जैसे
कहीं न 'कट' का नाम जंगजू आए कैसे
दिव्यदृष्टि 'मजबूर' रहे जलसा में खोये
तकिये में सब कुली छिपा बंदूकें सोये
रविवार, 30 नवंबर 2008
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2 टिप्पणियां:
उत्कृष्ट कटाक्ष है |
सटीक.
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