अद्भुत भारतवर्ष में न्यायालय का सीन
सोहें जज की 'पीठ' पर नर संवेदनहीन
नर संवेदनहीन, परिन्दों की भी पेशी
मांगें न्यायाधीश अजब कानून स्वदेशी
भले कोर्ट में दिव्यदृष्टि चिडि़या मर जाएं
फिर भी वे इंसाफ नहीं हासिल कर पाएं
शुक्रवार, 21 अगस्त 2009
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3 टिप्पणियां:
इस कविता के बाद आपकी कई पुरानी पोस्ट्स पढ़ी; एक से एक लाजवाब व्यंग्य कवितायें हैं। इन्हें हिन्दी चिट्ठाजगत में मुंडलिया का नामकरण समीरलालजी ने दिया था। आनन्द आ गया।
अब रोज आना होगा आपके ब्लॉग पर।
अच्छी व्यंग्य रचना है, बधाई!
पर ये शब्द पुष्टिकरण तो हटाएँ, इस के कारण कई बार टिप्पणी ही नहीं कर पाते हैं।
Sahi kaha.
Think Scientific Act Scientific
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