बुधवार, 8 जुलाई 2009

रीते मेघ निहार कर चिंतित हुए किसान

रीते मेघ निहार कर चिंतित हुए किसान
वर्षा के उसको कहीं दीखें नहीं निशान
दीखें नहीं निशान धान की रुकी बुआई
उपजा अगर न अन्न बढ़े भारी महंगाई
दिव्यदृष्टि आषाढ़ गया पहले ही रूखा
मरें भूख से लोग रहा यदि सावन सूखा

1 टिप्पणी:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

इंसान तरक्की के भरम पर है,
कलयुग अब अपने चरम पर है !
सूखे पड़ चुके सब जल बैराज है
इन्द्रदेव जी भी बहुत नाराज है !

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