शनिवार, 12 अप्रैल 2008

वोट पटाने के बदले दे ऋण से माफी

आजादी के हो गए बरस अभी तक साठ

उसकी तुलना में बढ़ा नहीं कृषक का ठाठ

नहीं कृषक का ठाठ , खेत में घंटों खटता

बदनसीब का कर्ज नहीं तब भी है पटता

दिव्यदृष्टि जब नहीं मुक्ति की दीखे धारा

करे मृत्यु का आलिंगन तब वह बेचारा

ऐसी दशा किसान की हुई न रातोंरात

लगातार छह दशक से उसे मिली है मात

उसे मिली है मात , कभी ठगते व्यापारी

कभी बढ़े आयात फसल सीजन में भारी

कहने को तो देती है सरकार समर्थन

फिर भी रामगरीब फिरे ले खाली बर्तन

एक जून रोटी नमक एक वक्त उपवास

करते - करते काटता ' गोबर ' सूखी घास

' गोबर ' सूखी घास , आस में बैठी धनिया

चिदम्बरम सा मेहरबान आएगा बनिया

वोट पटाने के बदले दे ऋण से माफी

तब जाकर गोदान सरल हो जाए काफी

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