शनिवार, 12 अप्रैल 2008

पांच बरस से व्याकुल है भारत की परजा

आया मेरे स्वप्न में धोतीधारी शख्स

चश्मा पहने आंख पर धीर तसल्लीबख्श

धीर तसल्लीबख्श, खड़ी थी पब्लिक घेरे

सुने सभी की बात कुटिल मुस्कान बिखेरे

तभी किसी ने कहा छोड़ दो फौरन रस्ता

चिदम्बरम आ गए बजट का लेकर बस्ता

पांच बरस के दंश से रूह रही थी कांप

नाम सुना तो वक्ष पर लगा लोटने सांप

लगा लोटने सांप, कौन-से बिल में जाऊं

भाग्य-विधाता को कैसे सूरत दिखलाऊं

आम आदमी की चिंता में जो मरता है

उसकी भी किरकिरी कहीं कोई करता है

यही सोचते खुल गई दिव्यदृष्टि की आंख

आंसू से सरसब्ज था बिस्तर, पीला पांख

बिस्तर, पीला पांख, माख था मन में भारी

रहती थोड़ी और कृपा निद्रा की जारी

काम चला लेता गुठली से उज्र न करता

आम-आदमी का रिश्ता बेमौत न मरता

बीती ताहि बिसारि के आगे की सुधि लेहु

बहुत दे चुके गुठलियां अब मीठे फल देहु

अब मीठे फल देहु विनय कर रहे दिगम्बर

यह चुनाव का वर्ष कृपा कुछ करो चिदम्बर

पांच बरस से व्याकुल है भारत की परजा

नाथ कीजिए माफ किसानों का अब करजा

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