शनिवार, 12 अप्रैल 2008

थोड़ा मोल बढ़ाओ आका

शमा जलाएं प्यार की दिव्यदृष्टि के साथ

नफरत का नश्तर कभी नजर न आए हाथ

नजर न आए हाथ , माथ पर पड़े न लाठी

गांधी की यह बात समझ लें लोग मराठी

मानवता का मर्म यही इसको अपनाएं

दिव्यदृष्टि के साथ प्यार की शमा जलाएं

हफ्ते भर को क्या हुए दिव्यदृष्टि गुमनाम

क्रिकेटरों का बढ़ गया दुनिया भर में दाम

दुनिया भर में दाम हुई कैसी अनहोनी

आज धनी हो गए कल तलक थे जो धोनी

ऐसे में फिर कलमकार क्यों मारे फाका

करो शाह रुख थोड़ा मोल बढ़ाओ आका

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