आरक्षण के नाम पर करना चक्का जाम
ध्यानाकर्षण का नहीं कतई अच्छा काम
कतई अच्छा काम, हकीकत समझें गूजर
बेमतलब मत करें किसी का जीना दूभर
दिव्यदृष्टि मुमकिन होता दर्जा जनजाती
स्वयं कुंवर जी दौड़े आते लेकर पाती
गुरुवार, 29 मई 2008
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ब्लॉग आर्काइव
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- मगर न करिए भूलकर महंगाई का जिक्र
- नहीं सैकड़ा पार कर सके वीरू भाई
- चली न कोई चाल फंस गया खूनी पंजा
- कोई मरियल शेर नहीं जाएगा ढाका
- आरक्षण के नाम पर करना चक्का जाम
- मार दिए नीतीश को ग्वाले बनकर गिद्ध
- ऊपर से अब तेल कर लगा रही सरकार
- खूब लड़े रणबांकुरे जीता राजस्थान
- बने कोटला कार्तिक सचमुच तारणहार
- सुपर शेर बन गए सभी गीदड़ बेचारे
- सेमी में युवराज ने पक्की कर ली सीट
- लौट गए मायूस मगर सौरव कलकत्ता
- गिरते-गिरते बच गई राहुल की दीवार
- किंग्स 11 की बची किसी तरह से लाज
- लगी पराजय हाथ शाह का सीना धड़के
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- करते हैं विस्फोट नाम पर जो जिहाद के
- मनमोहन जी मिमियाना छोड़ो
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- लूट ले गए सुपर किंग पंजाबी ढाबा
- जयपुर में भी जीत का चला तेज तूफान
- अपने ही घर में पिटे धोनी से सहवाग
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- पलक झपकते ढह गई राहुल की दीवार
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- चकमा खाए चौधरी गए जीत से चूक
- जीत गए युवराज शाह की सेना हारी
- घर लौटे मायूस लिए लक्खन मुंह लटका
- तल्ख बयानी छोड़कर भाव दिखाएं भद्र
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3 टिप्पणियां:
मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ। इससे आम लोगों को बहुत असुविधा होती है। विरोध प्रकट करने का यह ढ़ंग एकदम गलत है।
सच्ची बात बहुत रोचक ढंग से लिखी आपने.
बधाई
झगड़ा ध्यानाकर्षण जैसा नहीं। इस से अधिक गंभीर है. यह रास्ता खुद राजनैतिक दलों ने बंद और रास्ता रोको कर कर सिखाया है। असली दोषी तो राजनैतिक दल और सरकारें हैं।
और ये शब्द पुष्टिकरण हटाएँ, तभी अगली मुलाकात संभव होगी।
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