हालत पे अपनी रो रहा है आम आदमी
पहचान अपनी खो रहा है आम आदमी
आकाश की छत सर पे ज़मीं का है बिछोना
फुटपाथ पे नित सो रहा है आम आदमी
सरकार बेहतरी का रोज़ करती है दावा
दावों का बोझ ढो रहा है आम आदमी
शासन की शिलाजीत दिव्यदृष्टि बेअसर
गुठली की तरह हो रहा है आम आदमी
शुक्रवार, 5 सितंबर 2008
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- गली गली गुजरात में विफल हुए जासूस
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3 टिप्पणियां:
ab kya tippani likhi jaa sakti hai, sab kuchh to aapne kah diya
word verfication hata den, pls
aam admi ki halat ka sahi chitran kiya hai aapne.
सही है-
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