सोमवार, 7 सितंबर 2009

लाल हुई किस तरह मित्र लद्दाखी धरती

सिर धुनते आए सुबह चंपू चिरकुटलाल
नयन नचाते क्रोध से पूछे कठिन सवाल
पूछे कठिन सवाल, हमें बतलाओ भाया
भारत की सरहद में काहे 'ड्रैगन' आया
दिव्यदृष्टि सेना की बकरी कहां विचरती
लाल हुई किस तरह मित्र लद्दाखी धरती
सुनकर बर्निंग क्वेश्चन दिव्यदृष्टि बेहाल
काला दीखा दाल में मन में उठा मलाल
मन में उठा मलाल नहीं यदि शायर होता
चीनी-चूहों पर फौरन ही 'फायर' होता
मिट जाती घुसपैठ याद आ जाती नानी
नहीं स्वप्न में करते फिर हरकत बचकानी

1 टिप्पणी:

Kulwant Happy ने कहा…

बहुत खूब चिंतन किया, कविता के बहाने

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