गुरुवार, 15 अक्तूबर 2009

आइए दीपावली पर हम जलाएं वह ' दिया '

चल रही है हर तरफ फिरकापरस्ती की हवा ,
बढ़ रहा हर शख्स में नित दायरा संदेह का।
खत्म होती जा रही - इन्सानियत की उर्वरा ,
चढ़ रहा उस पर निरंतर आवरण इक रेह का।
पूछ कर देखा अदीबों - आलिमों से खूब ही ,
पर , नहीं उत्तर मिला मित्रो सियासी ठेह का।
आइए दीपावली पर हम जलाएं वह ' दिया '
दिव्यदृष्टि जो करे पावन उजाला ' नेह ' का।

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