शनिवार, 24 अक्तूबर 2009

पांच साल अब और नहीं बन पाये दाढ़ी

बाला साहब आजकल दीख रहे बेहाल
नहीं चुनावों में गली शिवसेना की दाल
शिवसेना की दाल, मराठी मानुष खंजर
गया पीठ में भोंक 'दर्द' हो रहा भयंकर
दिव्यदृष्टि हो गई व्यर्थ सब 'सेवा' गाढ़ी
पांच साल अब और नहीं बन पाये दाढ़ी

2 टिप्‍पणियां:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

अपने स्वार्थो के लिए समाज में अगर इसी तरह
इलाकाई और भाई-भतीजावाद बांटोगे !
तो भाई साहब, फसल उगने में थोडा समय लगेगा
मगर जैसा बोओगे, वैसा ही काटोगे !

संगीता पुरी ने कहा…

अच्‍छा लिखा !!

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